भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 28 मई 2023 वीर सावरकर जी की जयंती पर नए संसद भवन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर 75 रुपये का सिक्का और एक विशेष स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने 28 मई 2023 वीर सावरकर जी की जयंती पर नए संसद भवन का उद्घाटन किया। इस अवसर पर 75 रुपये का सिक्का और एक विशेष स्मारक डाक टिकट भी जारी किया गया।
नयी संसद भवन को बनाने में कितनी लागत आयी ?
पीएम मोदी ने 10 दिसंबर, 2020 को नए भवन की आधारशिला रखी थी और तीन साल से कम समय में यह बनकर तैयार हो गया। यह निर्माण कार्य सेंट्रल विस्टा रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट का हिस्सा है। 64,500 वर्ग मीटर में फैली ये चार मंजिला इमारत त्रिभुजाकार है। जबकि पुरानी संसद भवन की आकृति गोलाकार थी। नए संसद भवन को बनाने में 1200 करोड़ रुपये की लगत आयी है।
नयी संसद भवन में कितने सदस्यों के बैठने की क्षमता है?
नए संसद भवन का निर्माण दिल्ली में पुरानी जो संसद भवन के सामने किया गया है। इस नयी संसद भवन में लोकसभा और राज्यसभा दोनों इसी के अंदर हैं। लोकसभा चेंबर में 888 सांसदों के बैठने की व्यवस्था की गई है। यह मोर की थीम पर आधारित है। राज्यसभा चेंबर में 384 सांसदों के बैठने की व्यवस्था है और इसे कमल के थीम पर विकसित किया गया है। दोनों सदनों की संयुक्त बैठक होने पर लोकसभा कक्ष में कुल 1,280 सदस्यों के बैठने की व्यवस्था की गई है।
किसने तैयार किया डिजाइन?
नई संसद की डिजाइन गुजरात की एक आर्किटेक्चर फर्म HCP डिजाइंस ने तैयार की है। इस बिल्डिंग के मुख्य आर्किटेक्ट बिमल पटेल हैं। बिमल पटेल कई बड़ी इमारतों को डिजाइन कर चुके हैं। बिमल हसमुख पटेल को साल 2019 में आर्किटेक्ट के क्षेत्र में असाधारण काम के लिए पद्मश्री भी मिल चुका है। उन्होंने विश्वनाथ धाम काशी विश्वनाथ मंदिर, गुजरात हाईकोर्ट बिल्डिंग, आईआईएम अहमदाबाद कैंपस, साबरमती रिवरफ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट और पंडित दीनदयाल पेट्रोलियम यूनिवर्सिटी सहित कई बड़ी बिल्डिंग्स डिजाइन की हैं।
क्या है सेंगोल?
ऐतिहासिक स्वर्ण राजदंड “सेन्गोल” जो वर्तमान में आनंद भवन संग्रहालय इलाहाबाद में रखा है वहां से लाकर उसे अब नयी संसद भवन में लोकसभा अध्यक्ष की सीट के समीप स्थापित किया गया है। “सेन्गोल” भारत की न्यायपूर्ण और निष्पक्ष शासन का पवित्र प्रतीक है।
यह वही सेन्गोल है जिसे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने 14 अगस्त, 1947 की रात को अपने आवास पर तमिलनाडु के थिरुवदुथुराई आधीनम (मठ) से विशेष रूप से पधारे आधीनमों (पुरोहितों) से सेन्गोल ग्रहण किया था। नेहरू जी ने कई नेताओं की उपस्थिति में इसे स्वीकार किया था।
पंडित नेहरू के साथ सेन्गोल का निहित होना ठीक वही क्षण था, जब अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथों में सत्ता का हस्तांतरण किया गया था।
‘‘सेन्गोल’’ शब्द तमिल शब्द "सेम्मई" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "नीतिपरायणता"। ‘न्याय’ के प्रेक्षक के रूप में, अपनी अटल दृष्टि के साथ देखते हुए, हाथ से उत्कीर्ण नंदी इसके शीर्ष पर विराजमान हैं। इसका निर्माण स्वर्ण या चांदी से किया जाता था तथा इसे कीमती पत्थरों से सजाया जाता था।
यह दक्षिण भारत में सबसे लंबे समय तक शासन करने वाले और सबसे प्रभावशाली राजवंशों में से एक चोल राजवंश से जुड़ा है।
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